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फसलों की बुवाई

सोयाबीन, कपास, अरहर और मूंग की बुवाई में भारी गिरावट के आसार, प्रभावित होगा उत्पादन

सोयाबीन, कपास, अरहर और मूंग की बुवाई में भारी गिरावट के आसार, प्रभावित होगा उत्पादन

किसान भाई खेत में उचित नमी देखकर ही तिलहन और दलहन की फसलों की बुवाई शुरू करें

नई दिल्ली। बारिश में देरी के चलते और प्रतिकूल मौसम के कारण तिलहन और दलहन की फसलों की बुवाई में भारी गिरावट के आसार बताए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि सोयाबीन, अरहर और मूंग की फसल की बुवाई में रिकॉर्ड गिरावट आ सकती है। 

खरीफ सीजन की फसलों की बुवाई इस साल काफी पिछड़ रही है। तिलहन की फसलों में मुख्यतः सोयाबीन की बुवाई में पिछले साल के मुकाबले राष्ट्रीय स्तर पर 77.74 फीसदी कमी आ सकती है। 

वहीं अरहर की बुवाई में 54.87 फीसदी और मूंग की फसल बुवाई में 34.08 फीसदी की कमी आने की संभावना है। उधर बुवाई पिछड़ने के कारण कपास की फसल की बुवाई में भी 47.72 फीसदी की कमी आ सकती है। हालांकि अभी भी किसान बारिश के बाद अच्छे माहौल का इंतजार कर रहे हैं।

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तिलहन के फसलों के लिए संजीवनी है बारिश

- इन दिनों तिलहन की फसलों के लिए बारिश संजीवनी के समान है। जून के अंत तक 80 मिमी बारिश वाले क्षेत्र में सोयाबीन और कपास की बुवाई शुरू हो सकती है। जबकि दलहन की बुवाई में अभी एक सप्ताह का समय शेष है।

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दलहनी फसलों के लिए पर्याप्त नमी की जरूरत

- कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि दलहनी फसलों की बुवाई से पहले खेत में पर्याप्त नमी का ध्यान रखना आवश्यक है। नमी कम पड़ने पर किसानों को दुबारा बुवाई करनी पड़ सकती है। दुबारा बुवाई वाली फसलों से ज्यादा बेहतर उत्पादन की उम्मीद नहीं की जा सकती है। इसीलिए किसान भाई पर्याप्त नमी देखकर की बुवाई करें। ----- लोकेन्द्र नरवार

बारिश के चलते बुंदेलखंड में एक महीने लेट हो गई खरीफ की फसलों की बुवाई

बारिश के चलते बुंदेलखंड में एक महीने लेट हो गई खरीफ की फसलों की बुवाई

झांसी। बुंदेलखंड के किसानों की समस्या कम होने की बजाय लगातार बढ़ती जा रहीं हैं। पहले कम बारिश के कारण बुवाई नहीं हो सकी, अब बारिश बंद न होने के चलते बुवाई लेट हो रहीं हैं। इस तरह बुंदेलखंड के किसानों के सामने बड़ी परेशानी खड़ी हो गई है। मौसम खुलने के 5-6 दिन बाद ही मूंग, अरहर, तिल, बाजरा और ज्वर जैसी फसलों की बुवाई शुरू होगी। लेकिन बुंदेलखंड में इन दिनों रोजाना बारिश हो रही है, जिससे बुवाई काफी पिछड़ रही है।

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बारिश से किसानों पर पड़ रही है दोहरी मार

- 15 जुलाई को क्षेत्र के कई हिस्सों में करीब 100 एमएम बारिश हुई, जिससे किसानों ने थोड़ी राहत की सांस ली और किसान खेतों में बुवाई की तैयारियों में जुट गए। लेकिन रोजाना बारिश होने के चलते खेतों में अत्यधिक नमी बन गई है, जिसके कारण खेतों को बुवाई के लिए तैयार होने में वक्त लगेगा। वहीं शुरुआत में कम बारिश के कारण बुवाई शुरू नहीं हुई थी। इस तरह किसानों को इस बार दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।

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नमी कम होने पर ही खेत मे डालें बीज

- खेत में फसल बोने के लिए जमीन में कुछ हल्का ताव जरूरी है। लेकिन यहां रोजाना हो रही बारिश से खेतों में लगातार नमी बढ़ रही है। नमी युक्त खेत में बीज डालने पर वह बीज अंकुरित नहीं होगा, बल्कि खेत में ही सड़ जाएगा। इसमें अंकुरित होने की क्षमता कम होगी। बारिश रुकने के बाद खेत में नमी कम होने पर ही किसान बुवाई कर पाएंगे।

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रबी की फसल में हो सकती है देरी

- खरीफ की फसलों की बुवाई लेट होने का असर रबी की फसलों पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है। जब खरीफ की फसलें लेट होंगी, तो जाहिर सी बात है कि आगामी रबी की फसल में भी देरी हो सकती है।
तुलसी की खेती करने के फायदे

तुलसी की खेती करने के फायदे

दोस्तों आज हम बात करेंगे तुलसी की खेती की। जिस प्रकार विभिन्न प्रकार की फसलें जैसे दाल, गन्ना, गेहूं, जौ, बाजरा आदि पारंपरिक फसलें  मानी जाती है, उसी प्रकार औषधि के रूप में तुलसी की खेती की जाती है। तुलसी की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक बातों को जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें। 

तुलसी की खेती:

वैसे तो किसान गेहूं, गन्ना, धान आदि की फसल की खेती करते हैं और यह खेती वे लम्बे समय से करते आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में किसान इन खेतीयों को पारंपरिक तौर पर करते हैं। परंतु प्राप्त की गई जानकारियों के अनुसार, हरदोई के एक किसान ने इन परंपराओं से हटकर, तुलसी की खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाया है, तुलसी की फसल की खेती से काफी मुनाफा कमाया है। जिले के इस किसान ने पारंपरिक फसलों की बुवाई से हटकर अलग कार्य कर दिखाया है, जिसके लिए लोग उसकी काफी प्रशंसा करते हैं। ऐसे में आप इस किसान के नाम को जानने के लिए जरूर इच्छुक होंगे। हरदोई के इस किसान का नाम अभिमन्यु है, ये हरदोई के नीर गांव में निवास करते हैं। अभिमन्यु तुलसी की खेती लगभग 1 हेक्टेयर की भूमि पर कर रहे हैं, जहां उन्हें अन्य फसलों से ज्यादा मुनाफा मिल रहा है। ये खेती कर 90 से 100 दिनों के भीतर अच्छी कमाई कर लेते हैं।

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तुलसी के तेल की बढ़ती मांग:

मार्केट दुकानों आदि जगहों पर तुलसी के तेल की मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं। क्योंकि तुलसी स्वास्थ्य तथा औषधी कई प्रकार से काम में  लिया जाता है तथा विभिन्न विभिन्न प्रकार की औषधि बनाने के लिए तुलसी के तेल का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं दूसरी ओर यदि हम बात करें, त्वचा को आकर्षित व कुदरती निखार देने की, तो भी तुलसी के तेल का ही चुनाव किया जाता है। ऐसी स्थिति में मार्केट तथा अन्य स्थानों पर तुलसी की मांग तेजी से बढ़ रही हैं। ऐसे में किसान तुलसी की खेती कर अच्छी कमाई की प्राप्ति कर सकते हैं। 

तुलसी के तेल की कीमत:

तुलसी के तेल की कीमत लगभग 1800 से  2000 प्रति लीटर है। करोना जैसी भयानक महामारी के समय लोग ज्यादा से ज्यादा तुलसी के तेल का इस्तेमाल कर रहे थे। तुलसी के तेल का इस्तेमाल देखते हुए इसकी कीमत दिन प्रतिदिन और बढ़ती गई। बाजार और मार्केट में अभी भी इनकी कीमत उच्च कोटि पर है। 

तुलसी की खेती के लिए उपयुक्त भूमि का चयन:

किसानों के अनुसार कम उपजाऊ वाली जमीनों पर तुलसी की खेती बहुत ज्यादा मात्रा में होती है। जिन भूमियों में जल निकास की व्यवस्था सही ढंग से की गई हो उन भूमि पर उत्पादन ज्यादा होता है। बलुई दोमट मिट्टी तुलसी की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है।

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उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु तुलसी की खेती के लिए उपयोगी है। 

तुलसी की खेती करने के लिए भूमि को तैयार करना:

तुलसी की खेती करने से पहले भूमि को हल या किसी अन्य उपकरण द्वारा अच्छे से जुताई कर लेना चाहिए। एक अच्छी गहरी जुताई प्राप्त करने के बाद ही बीज रोपण का कार्य शुरू करना चाहिए। सभी प्रकार की भूमि तुलसी की खेती करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है। 

तुलसी के पौधों की बुवाई तथा रोपाई करने के तरीके:

तुलसी के बीज सीधे खेतों में नहीं लगाए जाते हैं, इससे फसल पर बुरा असर पड़ता है। तुलसी की फसल की बुवाई करने से पहले, कुछ दिनों तक इन्हें नर्सरी में सही ढंग से तैयार करने के बाद ही खेतों में इसकी रोपाई का कार्य करना चाहिए। सीधे बीज को खेतों में लगाना फसल को खराब कर सकता है। किसान तुलसी की खेती करने से पहले तुलसी के बीजों को नर्सरी में सही ढंग से तैयार करने की सलाह देते हैं।

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तुलसी के पौधे को तैयार करने के तरीके:

तुलसी के पौधों को बोने से पहले किसान खरपतवार को पूरे खेत से भली प्रकार से साफ करते हैं। उसके बाद लगभग 18 से 20 सेंटीमीटर गहरी जुताई करते हैं। तुलसी की खेती के लिए लगभग 15 टन सड़ी हुई गोबर को खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। तुलसी के पौधे के लिए क्यारियों की दुरी : पौधे से पौधे की दूरी ३० -४० सेंटीमीटर व लाइन से लाइन की दूरी ३८ -४६ सेंटीमीटर रखनी चाहिए। खाद के रूप में 20 किलोग्राम फास्फोरस और पोटाश का भी इस्तेमाल किया जाता है। बुवाई के 15 से 20 दिन के बाद खेतों में नत्राजन डालना फसल के लिए उपयोगी होता है। तुलसी के पौधे छह ,सात हफ्तों में रोपाई के लिए पूरी तरह से तैयार हो।

 

तुलसी के पौधों की रोपाई का उचित समय

तुलसी के पौधों की रोपाई का सही समय दोपहर के बाद का होता है। तुलसी के पौधों की रोपाई सदैव सूखे मौसम में करना फसल के लिए उपयोगी होता है। रोपाई करने के बाद जल्द ही सिंचाई की व्यवस्था बनाए रखना चाहिए। मौसम बारिश का लगे तब आप रोपाई का कार्य शुरू कर दे। इससे फसल की अच्छी सिंचाई हो जाती है। 

 दोस्तों हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा या आर्टिकल तुलसी की खेती करने के फायदे पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में  तुलसी की फसल जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक जानकारी मौजूद है। जो आप के बहुत काम आ सकती हैं। यदि आप हमारी दी गई जानकारियों से संतुष्ट है। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ तथा अन्य सोशल प्लेटफॉर्म पर शेयर करें।

धान की खड़ी फसलों में न करें दवा का छिड़काव, ऊपरी पत्तियां पीली हो तो करें जिंक सल्फेट का स्प्रे

धान की खड़ी फसलों में न करें दवा का छिड़काव, ऊपरी पत्तियां पीली हो तो करें जिंक सल्फेट का स्प्रे

वर्तमान में खरीफ फसल की बुआई हो चुकी है और फसल लहलाने भी लगी है। ऐसे में किसान अब फसल को सहेजने में लगे हुए हैं। किसान उन्हें कीट और अन्य बीमारियों से बचाने के लिये कई जतन कर रहे हैं। ऐसे में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) ने किसानों के लिए मौसम आधारित कृषि सलाह जारी की है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की मौसम आधारित कृषि सलाह

वर्षा के पूर्वानुमान को ध्यान में रखते हुए सभी किसानों को सलाह है की किसी प्रकार का छिड़काव ना करें और खड़ी फसलों व सब्जी नर्सरियों में उचित प्रबंधन रखे।

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दलहनी फसलों व सब्जी नर्सरियों में जल निकास की उचित व्यवस्था करें।

धान की फसल में यदि पौधों का रंग पीला पड़ रहा हो और पौधे की ऊपरी पत्तियां पीली और नीचे की हरी हो, तो इसके लिए जिंक सल्फेट (हेप्टा हाइडेट्र 21 प्रतिशत) 6 किग्रा/हैक्टेयर की दर से 300 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे करें। इस मौसम में धान की वृद्धि होती इसलिए फसल में कीटों की निगरानी करें। तना छेदक कीट की निगरानी के लिए फिरोमोन प्रपंच -3-4 /एकड़ लगाए।
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इस मौसम में किसान गाजर की (उन्नत किस्म - पूसा वृष्टि) बुवाई मेड़ों पर कर सकते हैं। बीज दर 0-6.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़। बुवाई से पूर्व बीज को केप्टान - 2.0 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचार करें और खेत में देसी खाद और फास्फोरस उर्वरक अवश्य डालें। जिन किसानों की टमाटर, हरी मिर्च, बैंगन व अगेती फूलगोभी की पौध तैयार है,

वे मौसम को देखते हुए रोपाई मेड़ों पर (ऊथली क्यारियों) पर करें और जल निकास का उचित प्रबन्ध रखें।

इस मौसम में किसान ग्वार (पूसा नव बहार, दुर्गा बहार), मूली (पूसा चेतकी), लोबिया (पूसा कोमल), भिंडी (पूसा ए-4), सेम (पूसा सेम 2, पूसा सेम 3), पालक (पूसा भारती), चौलाई (पूसा लाल चौलाई, पूसा किरण) आदि फसलों की बुवाई के लिए खेत तैयार हो तो बुवाई ऊंची मेंड़ों पर कर सकते हैं। बीज किसी प्रमाणित स्रोत से ही खरीदें। जल निकास का उचित प्रबन्ध रखें। किसान वर्षाकालीन प्याज की पौध की रोपाई इस समय कर सकते हैं। जल निकास का उचित प्रबन्ध रखें। इस मौसम में किसान स्वीट कोर्न (माधुरी, विन ऑरेंज) और बेबी कोर्न (एच एम-4) की बुवाई कर सकते हैं।
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जल निकास का उचित प्रबन्ध रखें। कद्दूवर्गीय और दूसरी सब्जियों में मधुमक्खियों का बडा योगदान है क्योंकि, वे परागण में सहायता करती है इसलिए जितना संभव हो मधुमक्खियों के पालन को बढ़ावा दें। कीड़ों और बीमारियों की निरंतर निगरानी करते रहें, कृषि विज्ञान केन्द्र से सम्पर्क रखें व सही जानकारी लेने के बाद ही दवाईयों का प्रयोग करें। किसान प्रकाश प्रपंश (Light Trap) का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए एक प्लास्टिक के टब या किसी बड़े बरतन में पानी और थोडा कीटनाशक दवाई मिलाकर एक बल्ब जलाकर रात में खेत के बीच में रखे दें। प्रकाश से कीट आकर्षित होकर उसी घोल पर गिरकर मर जाएंगे। इस प्रपंश से अनेक प्रकार के हानिकारक कीटों मर जाते हैं। गेंदा के फूलों की (पूसा नारंगी) पौध छायादार जगह पर तैयार करें और जल निकास का उचित प्रबन्ध रखें। फलों (आम, नीबू और अमरुद) के नऐ बाग लगाने के लिए अच्छी गुणवत्ता के पौधों का प्रबन्ध करके इनकी रोपाई जल्द करें।
बौनेपन की वजह से तेजी से प्रभावित हो रही है धान की खेती; पंजाब है सबसे ज्यादा प्रभावित

बौनेपन की वजह से तेजी से प्रभावित हो रही है धान की खेती; पंजाब है सबसे ज्यादा प्रभावित

भारत में खेती का खरीफ सीजन चल रहा है। इस मौसम में उत्पादित की जाने वाली फसलों की बुवाई लगभग भारत भर में पूरी हो चुकी है। कई राज्यों में तो अब खरीफ की फसलें लहलहा रही हैं लेकिन इस बार धान की फसल में एक रोग ने किसानों की रातों की नींद खराब कर दी है। यह धान में लगने वाला बौना रोग (paddy dwarfing)  है जो धान की फसल को बर्बाद कर रहा है। यह बीमारी वर्तमान समय में पंजाब में तेजी से फ़ैल रही है जिससे राज्य के किसान परेशान हो रहे हैं, क्योंकि इस रोग में धान के पौधे अविकसित रह जाते हैं व उनसे धान का उत्पादन नहीं हो पायेगा।


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इस रोग के कारण पंजाब राज्य के कई जिले प्रभावित हो चुके हैं। वहां के किसान इस रोग के कारण बेहद परेशान हैं क्योंकि उन्हें अपनी धान की खेती खराब होने का भय सता रहा है। इस रोग की समस्या मुख्यतः लुधियाना, पठानकोट, गुरदासपुर, होशियारपुर, रोपड़ और पटियाला में है। जहां सैकड़ों हेक्टेयर जमीन में लगी हुई धान की फसल चौपट हो रही है। बौनेपैन का रोग धान की फसलों को पूरी तरह से बर्बाद कर रहा है। इस रोग की वजह से अब तक लुधियाना जिले को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। राज्य में बड़े पैमाने पर धान उगाया जा रहा है, लेकिन अब तक 3,500 हेक्टेयर से अधिक फसल में बौनेपैन का रोग लग चुका है। अगर धान के मूल्य का हिसाब किया जाए, तो सिर्फ लुधियाना में ही अब तक इस रोग के कारण किसानों को 51.35 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है। यह किसानों के लिए बड़ा झटका है क्योंकि आने वाले दिनों में यदि यह बीमारी नहीं रुकी, तो यह बीमारी और भी ज्यादा धान की फसल को अपने चपेट में ले सकती है। यह सब के चलते धान के उत्पादन में असर पड़ना तय है और इस कारण से किसानों को इस बार धान की खेती में नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।


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जब यह बीमारी तेजी से बढ़ने लगी उसके बाद पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने धान के पौधों में बौनेपन की इस बीमारी पर रिसर्च किया। जिसके बाद पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने बताया कि यह बीमारी सबसे पहले चीन की धान की खेती में देखी गई थी। उसके बाद यह दुनिया में फ़ैली है। पौधों में यह बीमारी डबल-स्ट्रैंडेड आरएनए वायरस के कारण होती है, जिसके मुताबिक इसे बौना रोग कहते हैं। इसके पहले पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने इस बीमारी को अज्ञात बीमारी के तौर पर चिन्हित किया था। पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के साथ पंजाब की सरकार इस बीमारी से निजात पाने के लिए लगातार प्रयासरत है ताकि किसानों की कड़ी मेहनत से उगाये गए धान को बचाया जा सके। इस समस्या का समाधान ढूढ़ने के लिए पंजाब सरकार ने सम्बंधित विभागों को आदेश जारी किये हैं, क्योंकि यदि इस समस्या के समाधान में देरी की गई तो पंजाब के किसानों की हजारों हेक्टेयर में लगी हुई धान की खेती खराब हो सकती है, जो किसानों के लिए बड़ा झटका होगा।
महाराष्ट्र में भारी बरसात की वजह से फसलें हुईं नष्ट, किसानों की बढ़ी परेशानी

महाराष्ट्र में भारी बरसात की वजह से फसलें हुईं नष्ट, किसानों की बढ़ी परेशानी

इस साल महाराष्ट्र में बहुत ज्यादा बरसात हुई है, जिससे राज्य के किसानों को बहुत सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। लगातार बरस रहे पानी की वजह से इन दिनों नदी नाले उफान पर हैं, जिससे किसान अपने खेतों में समय से नहीं पहुंच पा रहे हैं और फसलों में समय पर खाद देने का काम नहीं हो पा रहा। इसके साथ ही फसलों की निराई गुड़ाई में भी लगातार हो रही वर्षा की वजह से देरी हो रही है, जिससे खेतों खरपतवार की समस्या बढ़ती जा रही है। खेतों में पानी जमा होने के कारण फसलों के सड़ने का ख़तरा बढ़ गया है। इस समस्या से निजात पाने के लिए राज्य के राज्य के कृषक लगातार मेहनत कर रहे हैं ताकि अपनी खेती को इस आपदा से बचा पाएं। लेकिन इसके बावजूद कृषकों की चिंता कम होने का नाम नहीं ले रही है। राज्य के धुले जिले में हुई बेहिसाब वर्षा के कारण कई फसलें अब भी पानी में डूबी हुई हैं, जिससे जिले के किसानों को फसलों के सड़ने की चिंता सता रही है। साथ ही बहुत सारे किसानों की कपास, मक्का, बजरी, मूंग, उड़द और मिर्च की फसलें पूरी तरह से नष्ट भी हो गईं हैं। निश्चित तौर पर इसका असर उत्पादन पर पडेगा। अगर इस तरह से चलता रहा तो इस साल खरीफ के उत्पादन में भारी कमी आ सकती है। ये भी पढ़े: किसानों के लिए खुशी की खबर, अब अरहर, मूंग व उड़द के बीजों पर 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी मिलेगी फसल सड़ने के अलावा खेती करने वाले लोग एक अन्य समस्या से जूझ रहे हैं। दरअसल खेत में जल जमाव के कारण फसल में पीलापन आ जाता है, जिससे उत्पादन प्रभावित हो रहा है। ज्यादा वर्षा के कारण धुले जिले में मिर्च की फसल पूरी तरह से सड़ चुकी है। एक के बाद एक फसल के सड़ने के बाद खेती करने वालों के लिए एक मुसीबत ख़ड़ी हो गई है, क्योंकि फसल सड़ने के बाद किसानों को लम्बा घाटा झेलना पड़ता है। कई बार उनके द्वारा खेत में डाला गया बीज भी वापस नहीं हो पाता। जुताई, बुवाई, खाद और मजदूरी का पैसा अतिरिक्त है, जो फसल सड़ने के कारण किसान को बिना किसी फायदे के वहन करना होता है। राज्य में अगर बरसात की बात करें तो कुछ फसलों को इससे फायदा भी हो रहा है, तो वहीं दूसरी ओर बहुत सारी फसलों को इससे घाटा हो रहा है। जिन फसलों में पानी की ज्यादा जरुरत होती है वो फसलें इस बरसात का जमकर लाभ उठा रही हैं और ऐसी फसलें अब भी खेतों में लहलहा रही हैं। ऐसी फसलों में बढ़िया उत्पादन होने की संभावना है, जिससे खेती करने वाले लोगों का घाटा कुछ हद तक बैलेंस हो सकता है। वहीं दूसरी ओर जिन कृषकों ने पानी वाली फ़सलों की बुवाई नहीं की है, उनके लिए इस तरह की बारिश एक बड़ा घाटा देकर जाएगी, जिससे किसान बेहद चिंतित हैं। ये भी पढ़े: हल्के मानसून ने खरीफ की फसलों का खेल बिगाड़ा, बुवाई में पिछड़ गईं फसलें राज्य में फिर से तेज बारिश का अंदेशा जताया जा रहा है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि इस माह भी महाराष्ट्र में जमकर बरसात होने की संभावना है, जिससे किसानों की बची खुची फसल भी चौपट हो सकती है। लगातार हो रही बरसात के कारण खेती करने वाले लोग संकट महसूस कर रहे हैं। इसलिए किसानों ने सरकार से भीषण वर्षा के कारण फसलों को हुए नुकसान की भरपाई करने की मांग की है। इसको लेकर कई किसान समूह सरकार के सामने अपनी मांग रख रहे हैं ताकि कृषकों की खराब हुई फसल का मुआवजा मिल सके। फिलहाल राज्य में मुंबई के साथ ठाणे, पुणे, नासिक जिले में भारी बरसात हो रही है, जिससे चारों तरफ पानी ही पानी नज़र आ रहा है। इसके अतिरिक्त पालघर, नासिक, रायगढ़, रत्नागिरी जिलों में भी जमकर बरसात हुई है। भारी बरसात की संभावना को देखते हुए किसानों से सतर्क रहने की अपील की गई है। राज्य के किसान पानी से होने वाले नुकसान से बचने के लिए अपने खेतों में पानी को जमा होने से रोकें। इसके लिए वो खेत की मेड़ काटकर नाली बना सकते हैं, जिससे वर्षा का पानी खेत निकल जाए। इससे कड़ी फसल को सड़ने से रोका जा सकता है।
महाराष्ट्र में रबी की फसलों की बुवाई को लेकर चिंतित किसान, नहीं मिल पाया अब तक मुआवजा

महाराष्ट्र में रबी की फसलों की बुवाई को लेकर चिंतित किसान, नहीं मिल पाया अब तक मुआवजा

महाराष्ट्र के नांदेड़ जनपद में मूसलाधार बारिश के कहर से करीब डेढ़ लाख हेक्टेयर भूमि में सोयाबीन की फसल नष्ट हो चुकी है। राज्य सरकार द्वारा मुआवजे के रूप में मिलने वाली आर्थिक सहायता में विलंब होने के चलते किसानों को रबी सीजन की फसलों की बुवाई करने हेतु आर्थिक संकटों से जूझना पड़ रहा है। किसान इधर उधर से कर्ज लेकर रबी सीजन की बुवाई हेतु खाद एवं बीज की व्यवस्था कर रहे हैं। महाराष्ट्र राज्य के नांदेड़ जनपद में पुनः अत्यधिक बरसात से किसान गंभीर रूप से प्रभावित हो चुके हैं। किसानों की पकी पकायी फसल बर्बाद चुकी है। किसानों द्वारा बताया गया है कि महाराष्ट्र राज्य सरकार द्वारा कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली है। साथ ही, रबी सीजन का समय भी आरम्भ हो चुका है। इस वजह से उनको बेहद आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे में रबी फसलों की बुवाई करना किसानों के लिए चुनौतीपूर्ण है। राज्य के कुछ जनपदों में अब तक फसलों में हुई बर्बादी का पंचनामा भी नहीं हो पाया है। महाराष्ट्र के भंडारा जनपद में तो मजबूरी में किसान धान को बेहद न्यूनतम भाव में बेच रबी सीजन की फसलों की बुवाई हेतु बीज खरीद रहे हैं। बतादें कि मराठवाड़ा में सर्वाधिक सोयाबीन का उत्पादन किया जाता है। मराठवाड़ा के किसान पूर्णतया सोयाबीन की फसल पर निर्भर रहते हैं।

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लातूर निवासी किसान अंकित थोराट ने क्या कहा है ?

महाराष्ट्र राज्य के लातूर जनपद निवासी अंकित थोराट का कहना है, कि उनके द्वारा स्वयं की दो एकड़ भूमि में सोयाबीन की फसल की गयी। लेकिन पैदावार लेने से पूर्व ही आपदा के रूप में आयी प्रचंड बारिश ने उनकी फसल को बुरी तरह चौपट कर दिया। फसल बर्बाद होने के बाद भी अब तक उनको कोई आर्थिक सहायता नहीं प्राप्त हो पायी है। इस वजह से उनको रबी फसल की तैयारी करने में बहुत परेशानी हो रही है, क्योंकि वह पूर्णतया कृषि पर ही निर्भर रहते थे। हालाँकि महाराष्ट्र के कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार जी ने कहा यदि आवश्यकता हुई तो केंद्र सरकार से भी सहायता लेंगे। साथ ही, किसानों की अतिशीघ्र सहायता करने का पूरा प्रयास करेंगे।
इस फसल का उत्पादन कर किसान कमा सकते हैं अच्छा मुनाफा

इस फसल का उत्पादन कर किसान कमा सकते हैं अच्छा मुनाफा

भारत में शलजम की खेती की तैयारी की जा रही है। शलजम को सर्दी के सीजन की फसल के रूप में जाना जाता है। किसान शलजम का उत्पादन कर लाखों रुपये का मुनाफा हासिल कर सकते हैं। वर्तमान सीजन रबी की फसलों का चल रहा है। अधिकतर क्षेत्रों में फसलों की बुवाई तकरीबन पूर्ण हो गयी है। जिन स्थानों पर बुवाई नहीं हो पा रही है। कृषक बहुत तीव्रता से अपने खेतों में रबी फसलों की बुवाई करने में जुटे हुए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, खेतों में किसान पारंपरिक उत्पादन को तवज्जो देते हैं। हालाँकि, किसानों को आज के समय में पारंपरिक खेती के अतिरिक्त से अन्य खेती भी करने की अत्यंत आवश्यकत है। जिससे कि किसानों को इनकी बुवाई करके अच्छा खासा मुनाफा प्राप्त किया जा सके। आगे इस लेख में हम आपको इसी तरह की खेती के बारे में बताएँगे जो किसानों को बेहतरीन लाभ दिलाने में सहायक साबित होगी। साथ ही, यह लोगों के स्वास्थ्य एवं शरीर के लिए भी बहुत फायदेमंद होती है।

शलजम की खेती करने का तरीका

शलजम का उत्पादन समशीतोष्ण, उष्ण कटिबंधीय एवं उप उष्णकटिबंधीय इलाकों में इसकी खेती की जाती है। वैसे तो, शलजम का उत्पादन सामान्य जमीन में भी किया जा सकता है। शलजम का उत्पादन करने से पूर्व खरपतवार का बहुत ज्यादा ध्यान रखें। सर्व प्रथम 10 से 15 दिन में भूमि को बिल्कुल स्वच्छ और साफ करें। यदि किसान ज्यादा जगह में शलजम का उत्पादन करते हैं तो, खरपतवार पर विशेष रूप से ज्यादा ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होती है। क्योंकि खरपतवार फसल को सर्वाधिक हानि पहुंचाती है। इसके अतिरिक्त विशेषज्ञों की सलाह पर पेंडीमेथलिन 3 लीटर की मात्रा को 800 से 900 लीटर पानी में मिश्रण कर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना फसल के लिए काफी अच्छा होता है।

शलजम को रोगग्रसित होने से कैसे बचाएं

शलजम की फसल को कीट एवं रोगों से संरक्षित करना बेहद आवश्यक होता है। शलजम की फसल में मुख्यतयः पीला रोग, अंगमारी जैसे फफूंद प्रभावित करने लग जाते हैं। उस स्थिति में शलजम की फसल में कीटनाशक दवा का छिड़काव बहुत जरूरी है। ध्यान रहे अगर कोई पौधा किसी रोग की चपेट में आ गया है, तो उसको जड़ से उखाड़कर फेंक देना ही अच्छा रहेगा। इसके अतिरिक्त शलजम में आमतौर पर गलन रोग भी पाया जाता है। इस संबंध में किसानों को कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेकर बीजारोपण से पूर्व थीरम 3 ग्राम से प्रति किलो छिड़काव करना चाहिए। बुवाई के उपरांत नवीन पौधा उपज आए तो आस-पास की मृदा में कप्तान 200 ग्राम को 100 लीटर पानी में मिश्रण कर छिड़काव कर दिया जाये।
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शलजम को इन रोगों से बचाना बेहद आवश्यक होता है

शलजम की फसल में लगने वाले रोग जैसे कि सुंडी, बालदार, कीड़ा, मुंगी, माहू एवं कीट काफी गंभीर रुप से प्रभावित करते हैं। कीटों से संरक्षण हेतु 700 से 800 लीटर पानी में 1 लीटर मैलाथियान का मिश्रण कर फसल में छिड़काव कर दें। इसके अतिरिक्त 1.5 लीटर एंडोसल्फान की मात्रा को उतने ही पानी में मिश्रण कर छिड़काव करना जरुरी होगी। यह मात्रा प्रति हेक्टेयर के अनुरूप से ही करें।

शलजम की फसल कितने दिन में तैयार हो जाती है

शलजम 45 से 70 दिन के अंतराल में पककर खुदाई हेतु तैयार हो जाती है। शलजम की खुदाई को समयानुसार ही करलें, क्योंकि यदि खुदाई में किसी भी कारण वस तो शलजम में रेशे उत्पन्न हो जाते हैं, जो कि फसल को काफी नुकसान पहुंचाते है। इसकी वजह से शलजम का स्वाद अच्छा नहीं रहता है। खुदाई के बाद शलजम को अच्छी तरह से धोना बेहद जरुरी है। इसके बाद शलजम को टोकरी में भरकर मंडी पहुँचा दिया जाए। किसानों को मंडी में शलजम का अच्छा खासा भाव मिल जाता है। सर्दियों के समय उत्पादित होने वाली शलजम जड़ में उत्पन्न होती है। इस वजह से शलजम की जड़ एवं पत्ते ही उपयोग में लिए जाते हैं। इसके अंदर विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन के, कैलशियम इत्यादि प्रचूर मात्रा में पाया जाता है।
अप्रैल माह में किसान भाई इन फसलों की बुवाई करके कमाएं मोटा मुनाफा

अप्रैल माह में किसान भाई इन फसलों की बुवाई करके कमाएं मोटा मुनाफा

साल का मार्च माह खत्म होने को है, कुछ दिनों बाद ही अप्रैल माह शुरू हो जाएगा। इस माह में जायद की फसल की बुवाई का कार्य प्रारंभ हो जाता है। 

इसके साथ ही किसान भाई इस माह में बागवानी फसलों की बुवाई भी करते हैं ताकि समय आने पर उपज प्राप्त करके किसान अपने लिए कुछ आमदनी कर सकें। 

मौसम के हिसाब से खेती करने से फसलों को अच्छा पोषण मिलता है जिससे उत्पादन अच्छा होता है और किसान भाई अच्छा खास मुनाफा कमा सकते हैं। 

देश के ज्यादातर किसान अप्रैल माह में अपने खेतों में सब्जियों और फलों की खेती करना पसंद करते हैं, क्योंकि इस समय सब्जियों और फलों की खेती करके किसान भाई अच्छा खासा मुनाफा कमा सकतें हैं। 

आज हम किसान भाइयों को बताने जा रहे हैं कि अप्रैल माह में किसान भाई किन फसलों को उगाएं ताकि भविष्य में किसानों को अच्छी खासी कमाई हो सके।

हल्दी की खेती

हल्दी भारतीय व्यंजनों में बेहद महटवपूर्ण स्थान रखती है। इसका ज्यादातर मसाले के रूप में घरों में प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा
हल्दी को दवाइयां बनाने में और सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। 

इसकी बुवाई किसान भाइयों को अप्रैल के पहले सप्ताह से शुरू कर देनी चाहिए। इस फसल की भारतीय बाजार में भारी मांग रहती है और इसका भाव भी 100 से लेकर 200 रुपये प्रति किलो तक होता है।

पपीता की खेती

पपीता भारत में एक महत्वपूर्ण फल है। जिसे लोग खूब पसंद करते हैं इसलिए इस फल की मांग भी भारत में बहुत ज्यादा रहती है। इसके लिए किसान भाइयों को अप्रैल माह के पहले सप्ताह से ही खेत बनाने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। साथ ही अप्रैल माह के दूसरे सप्ताह से इसकी बुवाई शुरू कर देनी चाहिए।

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केला की बुवाई

पूरे भारत में केला सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला फल है। इसकी खेती मुख्यतः महाराष्ट्र में होती है। केले की खेती करने वाले किसानों को अप्रैल माह में बुवाई की तैयारी शुरु कर देनी चाहिए। इस फल के कम रेट के कारण इसकी बाजार में सबसे ज्यादा मांग रहती है।

आम की खेती

आम भी देश में महत्वपूर्ण फल है। गर्मियों में इसकी विशेष मांग रहती है। इससे कई प्रकार के जूस बनाए जाते हैं। इसके साथ ही आचार और जैम बनाने में भी इसका बहुतायत से प्रयोग किया जाता है। 

इस कारण बाजार में इसकी भारी मांग रहती है। किसान भाई चाहें तो अप्रैल माह से आम की बुवाई का काम शुरू कर सकतें हैं। जो भी किसान भाई अपने खेत में आम का बाग लगाने जा रहे हैं वो अप्रैल माह से खेत बनाना शुरू कर दें।

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चौलाई की खेती

चौलाई गर्मी और बरसात दोनों मौसम में उगाई जाने वाली सब्जी या साग है। लेकिन गर्मियों के मौसम में उगाई जाने वाली चौलाई की गुणवत्ता ज्यादा अच्छी रहती है। इसके साथ ही गर्मियों में चौलाई का उत्पादन भी ज्यादा होता है। 

इस फसल की खेती करके किसान भाई अन्य फसलों के मुकाबले ज्यादा पैसा कमा सकते हैं। बाजार में चौलाई की पूसा कीर्ति, पूसा लाल चौलाई, पूसा किरण जैसी उन्नत किस्में उपलब्ध हैं जिनका चयन किसान भाई अपने खेत में लगाने के लिए कर सकते हैं।

भिंडी की खेती

भिंडी की खेती गर्मियों में सर्वोत्तम मानी जाती है। गर्मियों के मौसम में इस फसल की सहायता से किसान भाई बम्पर कमाई कर सकते हैं। 

इस फसल के लिए हर तरह की मिट्टी उपयुक्त होती है, इसलिए देश में हर जगह के किसान भाई इस फसल की खेती आसानी से कर सकते हैं। 

अगर बुवाई के समय खेत की मिट्टी भुरभुरी हो तो भिंडी की फसल से बेहद कम समय में बम्पर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इसकी बुवाई अप्रैल माह के पहले सप्ताह से करनी शुरू कर देनी चाहिए।

लौकी की खेती

वैसे तो लौकी की खेती भारत में सर्दियों और गर्मियों दोनों में की जाती है। लेकिन गर्म और आद्र जलवायु वाली लौकी सबसे बढ़िया होती है। 

साथ ही गर्मियों के समय किसान भाई लौकी की फसल उगाकर अच्छा खास उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। जिन भी किसान भाइयों को गर्मियों में लौकी की फसल लगानी हो वो अप्रैल माह के पहले सप्ताह में इसकी बुवाई करनी शुरू कर दें।

किसान अप्रैल माह में उगाई जाने वाली इन फसलों से कर पाएंगे अच्छी आय

किसान अप्रैल माह में उगाई जाने वाली इन फसलों से कर पाएंगे अच्छी आय

आज हम बात करने वाले हैं, अप्रैल माह में उगाई जाने वाली अच्छी फसलों के बारे में जिनसे किसानों को अच्छी आय हो सके। जैसा कि हम जानते हैं, कि अप्रैल माह तक तकरीबन समस्त रबी फसलें कट जाती हैं। 

किसान अपनी पैदावार को भी प्रबंधन करके मंडी पहुंचाने लग जाते हैं। अब जायद सीजन की फसलें बोई जानी हैं। ये फसलें मुनाफे के सहित मृदा की उपजाऊ शक्ति को भी बढ़ा देती हैं।

अप्रैल माह में उगाई जाने वाली फसलें

रबी फसलों की कटाई और खरीफ सीजन से पूर्व कुछ महीनों के मध्य में खाली बच जाते हैं, जिसे जायद सीजन भी कहा जाता है। इसके दौरान बहुत सी तिलहनी एवं दलहनी फसलों की बुवाई की जाती है, जो धान मक्का की खेती से पूर्व ही तैयार हो जाती है। 

जायद सीजन के तहत खास बागवानी फसलों की भी बुवाई की जाती है। इसके अतिरिक्त अधिकाँश किसान मृदा की उर्वरक क्षमता को बढ़ाने हेतु जायद सीजन में लोबिया, मूंग और ढेंचा का उत्पादन भी किया जाता है। इससे मृदा में नाइट्रोजन का स्तर काफी बढ़ जाता है।

बुवाई से पहले बीजोपचार अत्यंत जरुरी है

रबी फसलों की कटाई के उपरांत सर्वप्रथम खेत में गहरी जुताई कर खेत को तैयार कर लें। जायद सीजन की फसलों की बुवाई करने से पूर्व मृदा की जांच जरूर करवा लें। 

क्योंकि मृदा परिक्षण से समुचित मात्रा में खाद-उर्वरक का इस्तेमाल करने की राहत मिल सकेगी। गैर जरुरी चीजों पर होने वाले खर्चों से छुटकारा मिल पाएगा। हर फसल सीजन के उपरांत मृदा परीक्षण करवाने से इसकी खामियों की भी जानकारी मिल जाती है। जिनका समयानुसार उपचार किया जा सकता है।

बेबी कॉर्न और साठा मक्का का उत्पादन

यह समय साठी मक्का और बेबी कॉर्न की खेती के लिए उपयुक्त है। इन दोनों फसलों को पककर तैयार होने में लगभग 60 से 70 दिन का समय लगता है। फिर कटाई के उपरांत सुगमता से धान की बिजाई का कार्य भी किया जा सकता है।

वर्तमान में बेबी कॉर्न भी काफी चलन में है। बतादें, कि इस मक्का को कच्चा ही बेचा जा सकता है। इतना ही नही भोजनालयों में भी बेबी कॉर्न के पकौड़े, सूप, सलाद, सब्जी, अचार आदि बेहद प्रसिद्ध हैं। 

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बागवानी फसलों की बुवाई

अप्रैल माह में किसान भाई बागवानी फसलों का उत्पादन करके अच्छी आय कर सकते हैं। अप्रैल माह करेला, तोरई, बैंगन, लौकी और भिंडी की खेती के लिए काफी अच्छा होता है। 

बेमौसम बारिश की मार से जायद सीजन की फसलों को संरक्षित करने के लिए किसान भाई ग्रीन हाउस, लो टनल और पॉलीहाउस की व्यवस्था कर लें। इन संरक्षित ढांचों को तैयार करने के लिए राज्य सरकारें किसानों को अनुदान भी उपलब्ध करवाती हैं।

उड़द की बुवाई

अप्रैल माह उड़द की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। दरअसल, जलभराव वाले क्षेत्रों में इसका उत्पादन करने से बचना चाहिए। उड़द का उत्पादन करने के लिए प्रति एकड़ 6-8 किलो बीजदर का उपयोग करें। 

साथ ही, किसान अपने खेत में उड़द की बुवाई करने से पूर्व थीरम अथवा ट्राइकोडर्मा से उपचारित जरूर कर लें।

अरहर की बुवाई

किसान दलहन उत्पादन के संबंध में आत्मनिर्भर होने के तरफ अग्रसर होने के लिए अरहर की फसल उगा सकते हैं। जल निकासी वाली मृदा में कतारों में अरहर का बीजारोपण किया जाता है। 

यह फसल 60 से 90 दिनों के समयांतराल में पककर कटाई हेतु तैयार हो जाती है। अगर आप चाहें, तो अरहर की कम समयावधि वाली किस्मों का बीजारोपण कर जल्दी उत्पादन हांसिल कर सकते हैं।

सोयाबीन की बुवाई

अप्रैल माह में बोई जाने वाली सोयाबीन की फसल में संक्रमण और बीमारियों की आशंका काफी कम ही रहती है। यह फसल वातावरण में नाइट्रोजन स्थिरीकरण का कार्य करती है। 

जलभराव वाले स्थानों में सोयाबीन की बुवाई करना ठीक नहीं होता है। सोयाबीन की बेहतरीन पैदावार लेने के लिए बुवाई से पूर्व खेत की 3 गहरी जुताईयां करना काफी अच्छा माना जाता है। 

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मूँगफली की बुवाई

अप्रैल माह के आखिरी सप्ताह तक मतलब कि गेहूं की कटाई के शीघ्र उपरांत मूंगफली की फसल का बीजारोपण किया जा सकता है। यह फसल अगस्त-सितंबर तक पककर तैयार हो सकती है। 

परंतु, जलनिकासी वाले क्षेत्रों में ही मूंगफली की बुवाई करना उचित रहता है। किसान मूँगफली का बेहतर उत्पादन लेने हेतु हल्की दोमट मिट्टी में बीजोपचार के उपरांत ही मूंगफली के दानों की खेत में बिजाई कर दें।

ढेंचा की बुवाई

खरीफ सीजन की धान-मक्का की बुवाई से पूर्व किसान बाई ढेंचा मतलब कि हरी खाद की फसल उठा सकते हैं। इससे खाद-उर्वरकों पर खर्च किए जाने वाली धनराशि को सुगमता से बचाया जा सकता है। 

ढेंचा की फसल 45 दिन के समयांतराल में लगभग 5 से 6 सिंचाईयों में पककर तैयार हो जाती है। अब इसके उपरांत धान का उत्पादन करने पर फसलीय गुणवत्ता एवं पैदावार बेहतरीन मिलती है। 

गेहूं की कटाई करने के उपरांत कृषि वैज्ञानिकों से जानकारी एवं अपने स्थान-जलवायु के मुताबिक गन्ना एवं कपास की बिजाई भी कर सकते हैं। 

साथ ही, फसलीय कीट एवं रोगिक संक्रमण की आशंकाओं को समाप्त करने हेतु पूर्व से ही बीजोपचार पर कार्य जरूर कर लें।

खरीफ सीजन क्या होता है, इसकी प्रमुख फसलें कौन-कौन सी होती हैं

खरीफ सीजन क्या होता है, इसकी प्रमुख फसलें कौन-कौन सी होती हैं

आज हम आपको खरीफ फसल से जुड़ी कुछ अहम बात बताने जा रहे हैं। इस लेख में जानेंगे कि खरीफ की फसल कौन कौन सी होती हैं और इन फसलों की बुवाई कब की जाती है। 

भारत में मौसम के आधार पर फसलों की बुवाई की जाती है। इन मौसमों को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है। खरीफ फसल, रबी फसल एवं जायद फसल। लेकिन आज हम खरीफ की फसल के बारे में आपको बताने वाले हैं। 

अगर हम खरीफ की फसलों के विषय में बात करें तो प्रमुखतः खरीफ की फसलों की बुवाई का समय जून - जुलाई होता है। जो कि अक्टूबर माह में पककर तैयार हो जाती हैं। 

बतादें कि अधिक तापमान व आर्द्रता का होना खरीफ फसलों के लिए अत्यंत आवश्यक होता है। वहीं जब खरीफ फसलों का पकने का समय आता है। तब शुष्क वातावरण का होना आवश्यक होता है। 

एक तरह से खरीफ फसलों को मानसूनी फसल भी कहा जाता है। खरीफ शब्द का इतिहास देखें तो यह एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ पतझड़ होता है। वर्षाकाल में इसकी बुवाई की जाती है। 

लेकिन कटाई के दौरान पतझड़ का समय आ जाता है। खरीफ फसलों को उच्च आद्रता और तापमान की जरुरत होती है। जानकारी के लिए बतादें कि एशिया के अंदर भारत, बांग्लादेश एवं पाकिस्तान में खरीफ की फसलों की बुवाई की जाती है। 

खरीफ फसलों की बुवाई जून-जुलाई में होती है। लेकिन भिन्न भिन्न स्थानों पर मानसून आने का वक्त और वर्षा में अंतराल होने की वजह से बिजाई के दौरान भी फासला देखा जाता है।

खरीफ की कुछ प्रमुख फसलें

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि धान, मक्का, बाजरा, जौ, ज्वार, कोदो, मूंगफली, सोयाबीन, तिल, अंडी (अरंण्ड), अरहर, मूंग, उड़द, गन्ना, सेब, बादाम, खजूर, अखरोट, खुबानी, पूलम, आडू, संतरा, अमरुद, लीची, बैगन, लीची, टिंडा, टमाटर, बीन, लोकी, करेला, तोरई, सेम, खीर, ककड़ी, कद्दू, तरबूज, लोबिया, कपास और ग्वार आदि खरीफ की कुछ प्रमुख फसलें हैं।

चावल

चावल एक तरह की उष्णकटबंधीय फसल है, चावल की फसल जलवायु में नमी एवं वर्षा पर निर्भर रहती है। भारत विश्व में दुसरे नंबर का चावल उत्पादक देश है। 

चावल की खेती के आरंभिक दिनों में सिंचाई हेतु 10 से 12 सेंटीमीटर गहरे जल की आवश्यकता पड़ती है। चावल की साली, अमन, अफगानी, बोरो, पलुआ और आस जैसी विभिन्न प्रजतियाँ होती हैं। 

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धान की खेती हेतु तकरीबन 24 % फीसद तापमान व 150 सेंटीमीटर की जरुरत पड़ती है। विशेष तौर पर भारत के हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और पंजाब में चावल का उत्पादन किया जाता है।

कपास

कपास एक उष्णकटबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय फसल में आती है। भारत कपास उत्पादन के मामले में विश्व में तीसरे स्थान पर आता है। कपास एक शुष्क फसल है। परंतु, जड़ों को पकने के दौरान जल की आवश्यकता पड़ती है। 

शाॅर्ट स्टेपल, लाॅन्ग‌ स्टेपल, मीडियम स्टेपल आदि कपास की कुछ किस्में हैं। कपास की खेती के लिए 21-30°C तापमान की जरूरत पड़ती है। कपास की फसल में 50 से 100 सेंटीमीटर वर्षा की जरूरत होती है। 

काली मृदा में कपास की खेती काफी अच्छी होती है, जिससे उत्पादन अच्छा-खासा मिलता है। भारत के राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, तमिल नाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, उड़ीसा में कपास का उत्पादन किया जाता है।

मूंगफली

भारत में मूंगफली की खेती मुख्यतः कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिल नाडु, गुजरात में की जाती है। मूंगफली की बुवाई ज्यादातर मानसून के आरम्भ में की जाती है। 

मूंगफली की बुवाई 15 जून से लेकर 15 जुलाई के बीच की जाती है। मूंगफली की बुवाई के लिए भुरभुरी दोमट एवं बलुई दोमट मृदा उपयुक्त होती है। साथ ही, भूमि में समुचित जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए।

लौकी

लौकी की यानी की घीया शारीरिक स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छी मानी जाती है। लौकी के अंदर पोटेशियम, मैग्नीशियम, आयरन, विटामिन बी और विटामिन सी पाए जाते हैं। 

इसके अतिरिक्त लौकी विभिन्न गंभीर रोगों जैसे कि वजन कम करने, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल और पाचन क्रिया में भी इस्तेमाल किया जाता है। लौकी की खेती ग्रीष्म एवं आर्द्र जलवायु में होती है। 

लौकी का सर्वाधिक उत्पादन उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा में किया जाता है। बलुई मृदा एवं चिकनी मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। 

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टमाटर

जब हम सब्जी की बात करें तो टमाटर का नाम ना आए ऐसा हो ही नहीं सकता। विटामिन एवं पोटेशियम के साथ-साथ टमाटर के अंदर विभिन्न प्रकार के खनिज तत्व विघमान रहते हैं। 

जो कि सेहत के लिए काफी लाभकारी साबित होते हैं। भारत के उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, बिहार और कर्नाटक आदि राज्यों में टमाटर का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। 

टमाटर की किस्मों की बात की जाए तो इसकी अरका विकास, अर्का सौरव, सोनाली, पूसा शीतल, पूसा 120, पूसा रूबी एवं पूसा गौरव आदि विभिन्न देशी उन्नत किस्में उपलब्ध हैं। 

इसके अतिरिक्त पूसा हाइब्रिड-3, रश्मि, अविनाश-2, पूसा हाइब्रिड-1 एवं पूसा हाइब्रिड-2 इत्यादि हाइब्रिड किस्में उपलब्ध हैं।

लीची

लीची एक अच्छी गुणवत्ता वाला रसीला फल होता है। लीची का सेवन करने से अच्छा पाचन तंत्र और बेहतर रक्तचाप जैसे कई सारे शारीरिक लाभ होते हैं। लीची की सबसे पहले शुरुआत या खोज दक्षिणी चीन से हुई थी। 

भारत विश्व में लीची उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर आता है। भारत के जम्मू कश्मीर, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश को देखी-देखा अब बिहार, पंजाब, पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, उत्तराखंड, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में भी लीची की खेती होने लगी है।

भिंड़ी

भिंड़ी विभिन्न प्रकार की सब्जियों में अपना अलग पहचान रखती है। काफी बड़ी संख्या में लोग इसको बहुत पसंद करते हैं। भिंडी के अंदर कैल्शियम, विटामिन ए, विटामिन बी, फास्फोरस जैसे कई तरह के पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। 

भिंड़ी का सेवन करने से लोगों के पेट से संबंधित छोटे-छोटे रोग बिल्कुल समाप्त हो जाते हैं। भिंड़ी की खेती के लिए बलुई दोमट मृदा सबसे उपयुक्त मानी जाती है। 

भिंडी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु की बात की जाए तो इसकी खेती के लिए अधिक गर्मी एवं अधिक ठंड दोनों ही खतरनाक साबित होती हैं। 

यदि हम भिंड़ी की किस्मों की बात करें तो पूसा ए, परभनी क्रांति, अर्का अनामिका, वीआरओ 6 और हिसार उन्नत इत्यादि हैं।